Tuesday, December 13, 2011

अन्ना मी अन्ना का कर्मकांड"भय बिनु होत न प्रीत गुसाईं " सो ,जन लोकपाल केवल एक संभावित कानूनी उपाय मात्र है सरकारी किस्म के भ्रष्टाचार के लिए ... पर यद

"भय बिनु होत न प्रीत गुसाईं " सो ,जन लोकपाल केवल एक संभावित कानूनी उपाय मात्र है सरकारी किस्म के भ्रष्टाचार के लिए ... पर यदि आप व्यापक सामजिक व्यवस्था परिवर्तन हेतू चिंतित हैं ...तो सावधान !!! वह लक्ष्य प्राप्त करना केवल इन सरकारी विधियों के वश की बात नही..हाँ ये सहायक वातावरण अवश्य निर्मित करेंगे ...पर उस पवित्र अभीष्ट प्राप्ति हेतू सामाजिक कानूनों की आवश्यकता पडेगी ...जो भ्रष्ट व्यक्ति का सामजिक बहिस्कार करें ..भ्रष्टाचारी के घर परिवार में शादी- विवाह सम्बन्ध करना बंद करें ...हमें(समाज को ) दो लोगों के नितांत व्यक्तिगत जीवन संबंधों में जो चरित्र हीनता दिखाई देती है उसकी परिभाषाओं को बदलना चाहिये ..उन दो लोगों के सम्बन्ध तो केवल दो परिवारों को ही प्रभावित करते हैं पर भ्रष्टाचार जैसा कुकृत्य एक सामजिक बलात्कार है ..अतः इसे करने वाले को सबसे बड़ा चरित्रहीन माना जाए ....फिर देखिये कैसे ''गधे के सिर से सींग जैसा'' गायब होता है भ्रष्टाचार ...लेकिन यह तभी संभव है जब समेकित और समवेत धार्मिक ,सामुदायिक प्रयास इसकी पहल करें ...अब सोचिये.... क्या ये कर सकते हैं हम ..या सिर्फ मी अन्ना मी अन्ना का कर्मकांड करना है ;;;

Monday, August 29, 2011

जश्न से आगे ..BEYOND CELEBRATION
भ्रष्टाचार जैसी चरित्रगत बुराई को कानून के माध्यम से रोकने के लिए एक महाप्रयास की शुरुआत को लेकर हम सभी उत्साहित हैं | और क्यों ना हों आखिर तिरसठ वर्षीय गणतंत्र में पहली बार एक ऐसी समस्या के हल होने की आभासी कानूनी सम्भावना बनी है ,जिससे जनता २४ *३६५ समय दो चार होती है | निश्चित रूप से अन्ना के पारदर्शी ईमानदार नेतृत्व नें लोकतंत्र में जनता की नित टूटती इच्छा शक्ति को कम से कम प्राथमिक तौर पर बल प्रदान किया है |प्रश्न उठता है कि क्या इस सदिच्छाधारी आन्दोलन के अभीष्ट की प्राप्ति संभव है और इसके खतरे क्या हैं ? इतना तो पूर्वनिश्चित है कि हम भारतीयों को त्योहारों व् उत्सवों का माहौल अत्यंत प्रिय रहता है और इसकी बानगी हम वर्ष भर देते रहते हैं ..यह अच्छी बात है कि हमें उत्साह और उमंग पसंद है बस हमें करना इतना है कि अन्ना के अनशन के टूटने को जश्न के रूप में मनाने को अपने कर्तव्यों की इति समझने की भूल नही करनी है..अतिरिक्त इसके अब हमारी जिम्मेवारी कई गुना बढ़ जाती है ---------
@ जिम्मेवारी, अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठने की उदाहरणार्थ अगर हम किसी कार्य की सूची / पंक्ति में पीछे हैं तो अपना कार्य अपने नियत स्थान क्रम में करवाने की ,ताकि हमारे कारण हमसे ऊपर के क्रम वाले को भ्रष्टाचार का सामना ना करना पड़े |
@ जिम्मेवारी, घूस देकर काम ना कराने की |
@ जिम्मेवारी, उत्सवों / जश्नों के अलावा भी जनचेतना के ठोस कार्यों में भागीदारी करने की |
@ जिम्मेवारी, इसकी कि हमारे कार्यों से किसी अन्य को सामाजिक व् आर्थिक पीड़ा ना पहुंचे ताकि आपसी सामाजिक विश्वास बढ़े और हमें न्यूनतम राजनीतिक प्रशासनिक एवं कानूनी आश्रय लेना पड़े |
@ जिम्मेवारी, अधिकारों को पाने के साथ साथ कर्तव्यों का पालन करने की |
@ जिम्मेवारी, अपने से ज्यादा वंचित / जरूरतमंद व्यक्ति को स्वेच्छा से अपनी जगह सरकारी योजनाओं / नौकरियों / आर्थिक मदद या अन्य लाभों को दिलवाने की / प्रोत्साहन देने की |
@ जिम्मेवारी, अपने परिवार में नव्या पीढ़ी को संवेदनशील एवं सजग नागरिक में परिवर्तित करने की |
@ जिम्मेवारी, आस्था / धार्मिक विश्वासों / मान्यताओं को केवल व्यक्तिगत व संविधान व कानूनी व्यवस्थाओं को सार्वजनिक / सार्वभौमिक
आरोपण के विषय ह्रदय से स्वीकार करने की |

*****आइये २१वी सदी के सजग, संवेदनशील, सह अस्तित्व वाले मानवाधिकारवादी नागरिक बनने की शपथ उठायें *******