अन्ना मी अन्ना का कर्मकांड"भय बिनु होत न प्रीत गुसाईं " सो ,जन लोकपाल केवल एक संभावित कानूनी उपाय मात्र है सरकारी किस्म के भ्रष्टाचार के लिए ... पर यद
"भय बिनु होत न प्रीत गुसाईं " सो ,जन लोकपाल केवल एक संभावित कानूनी उपाय मात्र है सरकारी किस्म के भ्रष्टाचार के लिए ... पर यदि आप व्यापक सामजिक व्यवस्था परिवर्तन हेतू चिंतित हैं ...तो सावधान !!! वह लक्ष्य प्राप्त करना केवल इन सरकारी विधियों के वश की बात नही..हाँ ये सहायक वातावरण अवश्य निर्मित करेंगे ...पर उस पवित्र अभीष्ट प्राप्ति हेतू सामाजिक कानूनों की आवश्यकता पडेगी ...जो भ्रष्ट व्यक्ति का सामजिक बहिस्कार करें ..भ्रष्टाचारी के घर परिवार में शादी- विवाह सम्बन्ध करना बंद करें ...हमें(समाज को ) दो लोगों के नितांत व्यक्तिगत जीवन संबंधों में जो चरित्र हीनता दिखाई देती है उसकी परिभाषाओं को बदलना चाहिये ..उन दो लोगों के सम्बन्ध तो केवल दो परिवारों को ही प्रभावित करते हैं पर भ्रष्टाचार जैसा कुकृत्य एक सामजिक बलात्कार है ..अतः इसे करने वाले को सबसे बड़ा चरित्रहीन माना जाए ....फिर देखिये कैसे ''गधे के सिर से सींग जैसा'' गायब होता है भ्रष्टाचार ...लेकिन यह तभी संभव है जब समेकित और समवेत धार्मिक ,सामुदायिक प्रयास इसकी पहल करें ...अब सोचिये.... क्या ये कर सकते हैं हम ..या सिर्फ मी अन्ना मी अन्ना का कर्मकांड करना है ;;;
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